लाल बहादुर शास्त्री

एक ऐसे समय की बात जो बातचीत देश की भविष्य की थी,  एक ऐसे समय की बात जो बात थी अपनी देश की सत्ता संभालने की हां हम बात कर रहे हैं। 1964 की एक समय था देश एक ऐसे पद  जिसे हम प्रधानमंत्री के पद बोलते हैं इस पर बैठने की एक अलग विचार विमर्श और बैठ  चल रही थी यह बात है जब हमारे देश के प्रधानमंत्री जवाहरलाल का निधन हुआ उस टाइम तो यह बात बहुत ही दर्द भरा थी जब जवाहरलाल नेहरू का निधन हुआ उसके बाद देश के प्रधानमंत्री के पद पर कौन बैठने की अलग लड़ाई चल रही थी कांग्रेस पार्टी यह निर्णय नहीं ले पा रहा था। की यह पद किसके हवाले करें किसके भरोसे करें बहुत सी बात विचारों के बाद एक नाम सामने आया और वह नाम था लाल बहादुर शास्त्री का और फिर लाल बहादुर शास्त्री की जीत हुई। लाल बहादुर शास्त्री के बाद हिंदुस्तान में पहली बार असली लोकतंत्र की जीत हुई असली डेमोक्रेसी की जीत हुई,  वो इस लिए की लाल बहादुर शास्त्री एक साधारण परिवार के थे। और बहुत गुरबत से आए थे, और इतनी गुरबत की एक बार उनके घर में दवा खरीदने का पैसा नहीं था जिसकी वजह से उनकी बेटी की मौत हो गई और जब वह प्रधानमंत्री के पद पर बैठे तब उनको छोटी सी गाड़ी खरीदने के लिए बैंक से कर्ज लेना पड़ा लाल बहादुर शास्त्री को 2 जून 1964 को अपने देश का नेता और प्रधानमंत्री चुन लिया गया था। और कामराज ने देश का भविष्य लाल बहादुर शास्त्री के हाथों में सौंप दिया। 

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