झारखंड की विरासत

अद्भुत है,  यह देवभूमि जहां हर 15 मील के अंतराल पर बोली में अंतर आ जाता है। संस्कृति में बदलाव आ जाता है रांची में रहते हुए पिछले 1 वर्ष में मैंने इस नई संस्कृति को बहुत करीब से जाना है यहां के संस्कृतियों प्राकृती पूजा पर्वतों के प्रति प्रेम एवं संस्कृतियों अद्भुत आयोजन है। लेकिन मैं उत्तर भारत के समतल भाग का रहने वाला हूं। इसीलिए मुझे यहां के संस्कृति का सिर्फ किताबी ज्ञान था फिर मैंने अपने मित्र की खूबियों को देखा और झारखंड की जनजाति समाज का आकलन किया वह काफी मिलनसार अपनी संस्कृति पर गर्व करने वाले परिश्रमी एवं आधुनिकता से परिपूर्ण व्यक्ति था मैंने हाल ही में झारखंड के आदिवासियों का प्रमुख पर्व सरहुल और कर्मा का आनंद उठाया यह दोनों मन को दिल को छूने वाला प्रकृति का पूजन करने वाले पर्वत है झारखंड की जनजातीय संस्कृति मेरे लिए दिल में जुड़ चुकी थी।  झारखंड आर्यव्रत सूर्य ऋषि-मुनियों एवं आदि काल से रह रहे आदिवासियों की भूमि है। यह आदिवासियों की प्रचंड इच्छा शक्ति है। जो उन्हें अपनी संस्कृति को हजारों सालों से सुरक्षित रखने की ताकत दे रही है, इस देवभूमि पर स्थित झारखंड अपने पड़ोसी राज्यों से काफी अलग है यह राज देश के लगभग 7000000 आदिवासियों का निवास स्थान है। 32 जनजातियों का घर है। यहां के मूल निवासी हैं। झारखंड एक ऐसा राज्य है जिसके पास देश के लगभग 39% खनिज है। परंतु विकास के नाम पर समय है, (झारखंड को झारखंड बनाने में अनेक लोगों ने बलिदान और त्याग की मिसाल पेश की , ) झारखंड की धरती ने अनेक वीरों को जन्म दिया है, झारखंड को एक ऐसा नेता चाहिए जो तिलक मांझी जैसा हो 1794 ईस्वी के क्रांति ने इस क्षेत्र को तिलक मांझी के रूप में एक महान नेता दिया झारखंड के एक ऐसे व्यक्ति जिन्हें भगवान का दर्जा दिया जाता है मैं उन्हें नमन करता हूं।  बिरसा मुंडा को झारखंड के परिवेश में भगवान का दर्जा प्राप्त है भगवान बिरसा झारखंड के सबसे बड़े नायक हैं अगर हम उन्हें झारखंड के पिता कहे तो कतई अतिरयोति नहीं होगी,  वह आदिवासियों के परिश्रम रूपी धर्म के सबसे बड़े प्रवर्तक थे।  15 नवंबर 2000 भगवान बिरसा के जन्म दिवस के उपलक्ष पर एक नया राज्य अपने उसूलों के साथ विश्व पटल पर आया। यह उन जनजातियों योद्धाओं का बलिदान त्याग तपस्या का परिणाम है कि आज झारखंड में नेतृत्व में हर क्षेत्र में सफलता के नए झंडे गाड़ रहा है, प्रकृति प्रेम सरहुल एवं कर्मा का नेतृत्व झरनों एवं नदियों का मिलन एवं यहां के अपने संस्कृति पर गर्व करने वाले आधुनिक आदिवासियों को अभिनंदन के योग्य है ? 
     Writer:  हिमांशु शेखर by chintu singh sisodiya 

Comments

Popular posts from this blog

मैं नालंदा विश्वविद्यालय बोल रहा हूँ

Navnirman Andolan