मेरे बारे में आपने सुना ही होगा। ऐतिहासिक के प्रमाण के अनुसार मैं अपने स्थापना के बारे में बता देना चाहता हूं । तो मेरा स्थापना गुप्तकालीन सम्राट कुमारगुप्त प्रथम ने 413 - 455 ईस्वी पूर्व में की अगर मैं बोलूं तो मेरा स्थापना 5 वी शताब्दी में हुआ। मैं इतना बड़ा और सुंदर था कि मेरे प्रांगण में आने वाले इंसान प्यार और स्नेह से भर जाया करते थे। मेरी लंबाई 800 फीट थी चौड़ाई 1600 फिट थी मैं 30 एकड़ मैं फैला था और मेरे अंदर की कहानी के बारे में आगे आप खुद जान जाइएगा। हां तो मैं नालंदा विश्वविद्यालय बोल रहा हूं। तो मेरे बारे में तो आपने बहुत कुछ सुना ही होगा क्योंकि मेरा इतिहास कुछ अनोखा है मैं ज्ञान का भंडार था मैं नई उड़ान का पुरानी पहचान था मुझ में बस्ती थी एक अलग दुनिया जिससे मैं खुद में ही एक पहचान था चाहत थी की खुद को और बड़ा बनाऊं मैं , मैं ज्ञान की इस सागर में एक अलग ज्ञानी था चीर कर बादलों को मंजिल तक पहुंचाने वाला मैं एक अलग अभिमानी था सबसे पहले आप सबको मैं बता देना चाहता हूं कि मैं रहता कहां था तो मैं बिहार राज्य के एक बड़े से जिले में निवास ...
नवनिर्माण आंदोलन यह बात सन 1973 और 74 की है। उस समय भारत की प्रधानमंत्री थी, इंदिरा गांधी एक तरफ जहां इंदिरा गांधी कानूनी मोर्चा पर लड़ाई लड़ रही थी। वहीं दूसरी तरफ आर्थिक स्थिति हालात बद से बदतर होते जा रहे थे। 1973 में महंगाई 23 फ़ीसदी बढ़ गई थी और 1974 में जो सामान 100₹ में मिलता था। उसकी कीमत 130₹ हो गई और ऐसे हालात में गुजरात में शुरू हुई नवनिर्माण आंदोलन गुजरात में तब कांग्रेस के चिमनभाई पटेल की सरकार थी।20 दिसंबर 1973 को एलडी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के छात्रों ने आंदोलन कर दिया भोजन शुल्क बढ़ने के विरोध में हड़ताल कर दी बिल बढ़ाने के कारण काफी छात्र परेशान हो गए उस समय कुछ 20 परसेंट छात्र को एक समय का खाना छोड़ना पड़ा था। और बात बढ़ती गई छात्र का आंदोलन को राज्य भर में समर्थन मिलने लगा 25 जनवरी 1974 को राज्यव्यापी हड़ताल का आयोजन किया गया। आंदोलनकारियों पर गोली चलाई गई सिचुएशन काबू करने के लिए आर्मी को बुलाया गया और पहली 26 जनवरी ऐसी थी गुजरात में जो कर्फ्यू के बीच में मनाई गई आखिरकार हुआ वही जिसका मांग छात्र कर रहे थे। चिमनभाई पटेल को इस्तीफा देना पड़ा...
अद्भुत है, यह देवभूमि जहां हर 15 मील के अंतराल पर बोली में अंतर आ जाता है। संस्कृति में बदलाव आ जाता है रांची में रहते हुए पिछले 1 वर्ष में मैंने इस नई संस्कृति को बहुत करीब से जाना है यहां के संस्कृतियों प्राकृती पूजा पर्वतों के प्रति प्रेम एवं संस्कृतियों अद्भुत आयोजन है। लेकिन मैं उत्तर भारत के समतल भाग का रहने वाला हूं। इसीलिए मुझे यहां के संस्कृति का सिर्फ किताबी ज्ञान था फिर मैंने अपने मित्र की खूबियों को देखा और झारखंड की जनजाति समाज का आकलन किया वह काफी मिलनसार अपनी संस्कृति पर गर्व करने वाले परिश्रमी एवं आधुनिकता से परिपूर्ण व्यक्ति था मैंने हाल ही में झारखंड के आदिवासियों का प्रमुख पर्व सरहुल और कर्मा का आनंद उठाया यह दोनों मन को दिल को छूने वाला प्रकृति का पूजन करने वाले पर्वत है झारखंड की जनजातीय संस्कृति मेरे लिए दिल में जुड़ चुकी थी। झारखंड आर्यव्रत सूर्य ऋषि-मुनियों एवं आदि काल से रह रहे आदिवासियों की भूमि है। यह आदिवासियों की प्रचंड इच्छा शक्ति है। जो उन्हें अपनी संस्कृति को हजारों सालों से सुरक्षित रखने की ताकत दे रही है, इस देवभूमि पर स्थित झारख...
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