झारखंड की विरासत
अद्भुत है, यह देवभूमि जहां हर 15 मील के अंतराल पर बोली में अंतर आ जाता है। संस्कृति में बदलाव आ जाता है रांची में रहते हुए पिछले 1 वर्ष में मैंने इस नई संस्कृति को बहुत करीब से जाना है यहां के संस्कृतियों प्राकृती पूजा पर्वतों के प्रति प्रेम एवं संस्कृतियों अद्भुत आयोजन है। लेकिन मैं उत्तर भारत के समतल भाग का रहने वाला हूं। इसीलिए मुझे यहां के संस्कृति का सिर्फ किताबी ज्ञान था फिर मैंने अपने मित्र की खूबियों को देखा और झारखंड की जनजाति समाज का आकलन किया वह काफी मिलनसार अपनी संस्कृति पर गर्व करने वाले परिश्रमी एवं आधुनिकता से परिपूर्ण व्यक्ति था मैंने हाल ही में झारखंड के आदिवासियों का प्रमुख पर्व सरहुल और कर्मा का आनंद उठाया यह दोनों मन को दिल को छूने वाला प्रकृति का पूजन करने वाले पर्वत है झारखंड की जनजातीय संस्कृति मेरे लिए दिल में जुड़ चुकी थी। झारखंड आर्यव्रत सूर्य ऋषि-मुनियों एवं आदि काल से रह रहे आदिवासियों की भूमि है। यह आदिवासियों की प्रचंड इच्छा शक्ति है। जो उन्हें अपनी संस्कृति को हजारों सालों से सुरक्षित रखने की ताकत दे रही है, इस देवभूमि पर स्थित झारख...