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Showing posts from April, 2023

झारखंड की विरासत

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अद्भुत है,  यह देवभूमि जहां हर 15 मील के अंतराल पर बोली में अंतर आ जाता है। संस्कृति में बदलाव आ जाता है रांची में रहते हुए पिछले 1 वर्ष में मैंने इस नई संस्कृति को बहुत करीब से जाना है यहां के संस्कृतियों प्राकृती पूजा पर्वतों के प्रति प्रेम एवं संस्कृतियों अद्भुत आयोजन है। लेकिन मैं उत्तर भारत के समतल भाग का रहने वाला हूं। इसीलिए मुझे यहां के संस्कृति का सिर्फ किताबी ज्ञान था फिर मैंने अपने मित्र की खूबियों को देखा और झारखंड की जनजाति समाज का आकलन किया वह काफी मिलनसार अपनी संस्कृति पर गर्व करने वाले परिश्रमी एवं आधुनिकता से परिपूर्ण व्यक्ति था मैंने हाल ही में झारखंड के आदिवासियों का प्रमुख पर्व सरहुल और कर्मा का आनंद उठाया यह दोनों मन को दिल को छूने वाला प्रकृति का पूजन करने वाले पर्वत है झारखंड की जनजातीय संस्कृति मेरे लिए दिल में जुड़ चुकी थी।  झारखंड आर्यव्रत सूर्य ऋषि-मुनियों एवं आदि काल से रह रहे आदिवासियों की भूमि है। यह आदिवासियों की प्रचंड इच्छा शक्ति है। जो उन्हें अपनी संस्कृति को हजारों सालों से सुरक्षित रखने की ताकत दे रही है, इस देवभूमि पर स्थित झारख...

गरीबी हटाओ नारा 1971

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                                  1971 एक अजीब बात जो सुनने में शायद बहुत अच्छे लगते हैं। लेकिन अगर मैं बात करूं वह बात की क्या वह बात हकीकत में सच है, हां मैं बात कर रहा हूं एक ऐसे नारा की जो नारा नहीं गरीबों का आशा था, लेकिन शायद आज हमारे राजनीतिक पार्टी ने इसे नारा बने रहने देने में ही अपनी भूमिका निभाई ,मैं वो नारा की बात कर रहा हूं जिसके सहारे 1971 में बड़े चुनाव की जीत हुई जी हां वह नारा है,  गरीबी हटाओ। सुनने में यह नारा जितना अच्छा है उतना ही अच्छा इसके काम है। लेकिन शायद यह नारा सिर्फ बोलने के लिए बना है जी हां जिस नारा का मैं बात कर रहा हूं वह नारा 1971 में इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया और शायद आज भी वही बातें दोहराई जा रही हैं हमारे महिला प्रधानमंत्री के मुंह की आवाज है। यह नारा उस समय ज्यादा सुनाई दी थी जब इंदिरा हटाओ के नारा सुनने को मिला था हां वह समय था इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री चुनाव के दौरान बोला गया यह नारा था जो इंदिरा गांधी की चुनाव का एक अलग हथ...

लाल बहादुर शास्त्री

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एक ऐसे समय की बात जो बातचीत देश की भविष्य की थी,  एक ऐसे समय की बात जो बात थी अपनी देश की सत्ता संभालने की हां हम बात कर रहे हैं। 1964 की एक समय था देश एक ऐसे पद  जिसे हम प्रधानमंत्री के पद बोलते हैं इस पर बैठने की एक अलग विचार विमर्श और बैठ  चल रही थी यह बात है जब हमारे देश के प्रधानमंत्री जवाहरलाल का निधन हुआ उस टाइम तो यह बात बहुत ही दर्द भरा थी जब जवाहरलाल नेहरू का निधन हुआ उसके बाद देश के प्रधानमंत्री के पद पर कौन बैठने की अलग लड़ाई चल रही थी कांग्रेस पार्टी यह निर्णय नहीं ले पा रहा था। की यह पद किसके हवाले करें किसके भरोसे करें बहुत सी बात विचारों के बाद एक नाम सामने आया और वह नाम था लाल बहादुर शास्त्री का और फिर लाल बहादुर शास्त्री की जीत हुई। लाल बहादुर शास्त्री के बाद हिंदुस्तान में पहली बार असली लोकतंत्र की जीत हुई असली डेमोक्रेसी की जीत हुई,  वो इस लिए की लाल बहादुर शास्त्री एक साधारण परिवार के थे। और बहुत गुरबत से आए थे, और इतनी गुरबत की एक बार उनके घर में दवा खरीदने का पैसा नहीं था जिसकी वजह से उनकी बेटी की मौत हो गई और जब वह प्रधानमंत्री के ...